गांव बना पाठशाला: एक मिसाल पेश कर रहे शिक्षक बलजीत सिंह कनौजिया
स्कूल बंद हुआ तो घरों की दीवारें बनीं बोर्ड, जैसे गांव ही बन गए हों कक्षाएं
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता

Gonda News :
जब देश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर नई चुनौतियां सामने आ रही हैं, ऐसे में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के सोनबरसा बक्सरा आज्ञाराम मनकापुर गांव के शिक्षक बलजीत सिंह कनौजिया ने शिक्षा के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। उनका यह प्रयास न केवल बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह समाज को यह सिखाता है कि सीमित संसाधनों में भी बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। 
स्कूल से लेकर गांवों तक फैला शिक्षा का उजियारा 
बलजीत सिंह कनौजिया कम्पोजिट विद्यालय सोनबरसा बक्सरा के समर्पित शिक्षक हैं। स्कूल बंद होने के बावजूद भी उन्होंने अपने सेवित क्षेत्र के गांवों में जाकर बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। वे न केवल बच्चों को पढ़ाते हैं, बल्कि शीतकालीन अवकाश में दिए गए गृह कार्य को चेक कर आगे का गृह कार्य भी देते हैं। इसके साथ ही, वे बच्चों के अभिभावकों से संवाद स्थापित कर बच्चों की दिनचर्या और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए जरूरी बातें साझा करते हैं।
कोरोना काल से शुरू हुआ था प्रयास, अब नई ऊंचाई पर पहुंचा 
कोरोना महामारी के दौरान जब स्कूल बंद थे, तब बलजीत सिंह ने गांव-गांव जाकर बच्चों को पढ़ाने का कार्य शुरू किया। उन्होंने गांव की खाली पड़ी दीवारों को कक्षा में बदलने का अनोखा तरीका निकाला। अपने खर्च पर उन्होंने इन दीवारों पर शिक्षण सामग्री छपवाकर और लिखवाकर उन्हें ‘स्कूल बोर्ड’ का रूप दिया। आज भी ये दीवारें बच्चों की शिक्षा में उपयोगी साबित हो रही हैं।
सामूहिक प्रयास का दिख रहा है परिणाम
शिक्षक बलजीत सिंह के इस कार्य में अन्य लोगों का भी सहयोग मिला। उनके साथ शिक्षक अरुण कुमार सिंह, प्रधान पतिराज, प्रधान प्रतिनिधि विजय चौहान, और अभिभावकों ने सक्रिय भूमिका निभाई। बच्चों के भविष्य निर्माण में अभिभावकों जैसे सरोज देवी, मनीषा, प्रियंका, कलावती, अनीता, रंजीत, रविन्द्र कुमार ने भी अपनी भागीदारी दी।
बच्चों में अमन, अखिलेश, संजू, सुरेंद्र, आकाश वर्मा, वैष्णवी, चांदनी, रीना, सितारा ने न केवल पढ़ाई में रुचि दिखाई बल्कि गांव की पाठशाला को जीवंत बनाए रखने में भी योगदान दिया।
शिक्षा शिक्षण की गढ़ी जा रही नई परिभाषा
बलजीत सिंह कनौजिया का यह प्रयास शिक्षा को सीमित संसाधनों में भी सुलभ और रोचक बनाने का आदर्श उदाहरण है। यह दिखाता है कि अगर किसी के पास समर्पण और नवाचार की भावना हो, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
शिक्षक बलजीत सिंह का यह प्रयास केवल शिक्षा का माध्यम नहीं है, बल्कि समाज में बदलाव की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह पहल ‘गांव बना पाठशाला’ को सही मायने में चरितार्थ करती है।

 

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