जलकुम्भी से बदलेगी तस्वीर: महिलाओं के हुनर से झीलें होंगी साफ, और बढ़ेगा रोजगार
महिला समूहों के नवाचार से जलकुम्भी बनेगी वरदान, कोड़र झील की सफाई का जिम्मा सौंपा जाएगा
शानदार है सीडीओ अंकिता जैन का स्वच्छता और सफाई को स्वरोजगार से जोड़ने का फ़ार्मूला

प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता

Gonda News :

गोंडा जिले में महिलाओं के हुनर और मेहनत को नई पहचान देने के लिए एक अनूठी पहल की गई है। जिले की मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) अंकिता जैन ने एक अभिनव योजना तैयार की है, जिसमें जलकुम्भी जैसे समस्या बने पौधे को उपयोगी संसाधन में बदलकर रोजगार का माध्यम बनाया जाएगा। इस पहल से न केवल जिले की झीलों और नदियों की सफाई होगी, बल्कि महिला समूहों को उनके गांव में ही रोजगार मिलेगा।

जलकुम्भी से रोजगार की नई संभावनाएं

जलकुम्भी को एक बेकार और हानिकारक जल पौधा माना जाता था, अब महिलाओं के लिए आय का साधन बनेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) जलकुम्भी का उपयोग कर कई उत्पाद बनाएंगे।

 हस्तशिल्प और सजावटी सामान के साथ बहु उपयोगी है जलकुम्भी

जलकुम्भी के तनों और पत्तियों का उपयोग कर महिलाएं खूबसूरत बास्केट, मैट, टोकरियां और अन्य सजावटी सामान तैयार करेंगी। जलकुम्भी में प्राकृतिक पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिससे यह जैविक खाद के लिए उपयुक्त है। यह खाद किसानों के लिए उपयोगी साबित होगी। जलकुम्भी से कागज़ और सुखाकर योगा मैट भी बनाए जा सकते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत पर बिकेंगे। जलकुम्भी के रेशों से साड़ियां और कपड़े बनाए जाएंगे, जो इन महिला समूहों की कला और मेहनत को दर्शाएंगे। जलकुम्भी से पौष्टिक पशु आहार तैयार किया जाएगा। साथ ही, यह पौधा जैविक ईंधन का भी स्रोत बनेगा।

 

कोड़र झील की सफाई का जिम्मा महिला समूहों को मिलेगा

जिले की प्रमुख झीलों में से एक, कोड़र झील, जलकुम्भी की समस्या से जूझ रही है। इस झील की सफाई का जिम्मा महिला समूहों को सौंपा जाएगा। सीडीओ अंकिता जैन ने इसका खाका खींच लिया है। महिलाएं जलकुम्भी को झील से निकालकर इससे उत्पाद तैयार करेंगी, जिससे झील साफ होगी और पर्यावरण भी संरक्षित रहेगा।

महिला उद्यमिता को मिली नई दिशा

गोंडा जिले में महिला स्वयं सहायता समूहों की संख्या 13,647 है और इनसे जुड़ी महिलाओं की संख्या 1.5 लाख से अधिक है। इन समूहों ने पहले भी अपने नवाचार से मिसाल कायम की है। कोविड महामारी के दौरान इन समूहों ने पीपीई किट, सैनिटाइजर, और मास्क बनाकर अपना योगदान दिया था।

वर्तमान में ये समूह तेल, मसाले, शहद, जैविक खाद, सजावट के सामान, अगरबत्ती, फूलबत्ती, इत्र, अचार, मुरब्बा, और मिट्टी व लकड़ी के खिलौनों जैसे उत्पाद बना और बेच रहे हैं। अब जलकुम्भी से नए उत्पाद तैयार करने का काम इनकी कड़ी मेहनत और हुनर का अगला उदाहरण होगा।

स्वरोजगार के बढावे के लिए जिले में जोड़ी जा रही है कड़ी से कड़ी

सीडीओ ने बताया कि महिला समूहों के उत्पादों के बिक्री के लिए कड़ी से कड़ी जोड़ी जा रही है। महिला समूह झाड़ू का उत्पादन करेंगे तो सफाई कर्मियों के लिए इन झाड़ुओं की खरीददारी की जाएगी।

 

महिला सशक्तिकरण की मिसाल

सीडीओ अंकिता जैन का कहना है, “महिला समूहों की बेहतरी और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जलकुम्भी की सफाई और स्वरोजगार को जोड़ने का यह विचार इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।”

पर्यावरण संरक्षण और रोजगार का संगम

इस पहल से झीलों और नदियों के पर्यावरण को संरक्षित किया जाएगा। साथ ही, महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद मिलेगी। जलकुम्भी से उत्पाद तैयार कर महिला समूह स्थानीय बाजारों में इन्हें बेचेंगे, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होगी।

एक नई क्रांति की शुरुआत

यह योजना न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति भी सुधारेगी। जलकुम्भी जैसी समस्या को समाधान में बदलने का यह प्रयास ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण का एक आदर्श उदाहरण बनेगा।

गोंडा की यह पहल अन्य जिलों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है, जहां महिलाओं का हुनर और प्रकृति का संतुलन एक साथ नई संभावनाओं के द्वार खोल रहा है।

 

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