रिपोर्टर पुनीता मिश्रा
सस्पेंस में डॉक्टर है सरकारी नौकरी करें या चलाए नर्सिंग होम
गोण्डा स्वाभाविक बात है जब पति पत्नी एक ही जिले में कार्यरत है तो नर्सिंग होम के साथ सरकारी नौकरी करने से प्रचार तो अच्छा होगा ही। क्योंकि गरीब अनजान जनता सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आयेगी। उन मरीजों से या उनके परिवार वालों से डॉक्टर तमीज से बात तक नही करते हैं और न ही उनको सही सलाह बताते हैं अगर मरीज एक बार एक डॉक्टर को दिखा दिया तो दूसरी बार उसको कोई डॉक्टर सही सलाह व इलाज नही करते है तब आशाओं का काम पर्सेंटेज के आधार पर शुरू होता है और आशा मुंह बनाकर कहती हैं चलो फलाने डॉक्टर बहुत अच्छा इलाज करती हैं उनसे मिलो बहुत सरल स्वभाव है। अब जिला महिला अस्पताल में इलाज सही न हो पाने के कारण निजी नर्सिंग में जाना मजबूरी मरीजों की मजबूरी बन चुकी है।
क्योंकि आधे डॉक्टर अपना निजी नर्सिंग होम चलाते है जिसकी वजह से मरीज अगर कुछ पूछता है तो डांटकर भगा देती है और मरीज दर दर भटककर आशा के सहयोग से उसी डॉक्टर के निजी नर्सिंग में जाता है जहां पर डॉक्टर के बात करने का अंदाज ही बदल जाता वहां पर वही डॉक्टर बड़े प्रेम से मरीज से बात करती है। और कम पैसे में इलाज करने का भरोसा देकर अपने निजी नर्सिंग होम सीजर करती हैं।
ये कारनामा किसी और का नही है बल्कि सरकारी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर माधुरी तिवारी का है ये सरकारी नौकरी करने के साथ सहारा के नाम से निजी नर्सिंग होम भी चलाती हैं
जनपद में हजारों की संख्या में आशा बहुओं की नियुक्ति है। सूत्रों की माने तो आशा बहुओं की सेटिंग जिला अस्पताल में तैनात डॉ माधुरी त्रिपाठी
के एक निजी नर्सिंग होम में है।और वह गांव से भोले भाले मरीजों को पकड़कर सेटिंग वाले हॉस्पिटल डॉ. माधुरी त्रिपाठी
सहारा हॉस्पिटल एंड मेटरनिटी सेंटर में ले जाती है। जहां जांच से लेकर उपचार पर मोटी रकम ली जाती है। कुछ निजी हॉस्पिटलों द्वारा आशाओं को मासिक वेतन भी दिया जाता है।
इसका खुलासा तब हुआ परसपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले अंजनी सिंह ने बताया कि वह अपनी गर्भवती भाभी को लेकर जिला महिला अस्पताल लेकर पहुंचे थे। यहां जिला अस्पताल में तैनात डॉ. माधुरी त्रिपाठी और आशा बहू नीलम ने उनके परिजनों को सहारा हॉस्पिटल एंड मेटरनिटी सेंटर में आकर डिलीवरी कराने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि ज़िला अस्पताल में बेहतर इलाज नहीं हो पाएगा। बहला-फुसलाकर डॉक्टर माधुरी गर्भवती महिला को अपने निजी हॉस्पिटल ले आई, इसके बाद शुरू हुआ डॉ माधुरी त्रिपाठी का असली खेल पहले तो सब कुछ जांच और टेस्ट कराने के बाद नार्मल डिलीवरी की बात कही थी लेकिन जैसे ही रात को आठ बजे डॉ0 माधुरी त्रिपाठी ने शातिर अंदाज में गर्भवती महिला के परिजनों से कहा कि मामला सीरियस है महिला का ऑपरेशन करना पड़ेगा और ज्यादा चार्ज लगेगा जो अक्सर प्राइवेट डॉक्टर करते हैं। मरीज के परिजनों को इतना डरा दो कि जमीन जायदाद बेच कर अपने मरीज को बचाने के लिए पैसे का इंतजाम करें, घबराकर महिला के परिजनों ने ऑपरेशन के लिए तैयार हो गए फीस भी दी, लेकिन ऑपरेशन के बाद महिला की हालत बिगड़ गई और डॉ. माधुरी त्रिपाठी के हाथ से मामला निकल गया, महिला की हालत नहीं सुधारी जा सकी तो और उल्टा महिला के परिजनों को ही डांट फटकार लगानी शुरू कर दी और कहा कि गर्भवती महिला को सांस की बीमारी थी। और तुम लोगों ने पहले इसे क्यों नहीं बताया। जबकि इस तरह पहले किसी बीमारी होने से परिजनों ने इंकार कर दिया। डॉ माधुरी त्रिपाठी से लूटने के बाद मरीज को बड़े एससीपीएम हॉस्पिटल में रेफर कर दिया, लेकिन एससीपीएम हॉस्पिटल में ईमानदारी दिखाई
गई क्योंकि अभी कुछ ही दिन पूर्व उनके व विजय लक्ष्मी पर
मुक़दमा पंजीकृत हो चुका है इस लिए उन्होंने ईमानदारी दिखाते हुए मरीज के बारे में बताया कि मरीज की घंटों पहले मौत हो चुकी है। शुक्र है कि कहो तो एससीपीएम के हॉस्पिटल में मरे हुए मरीज को मरा ही बताया। इसके बाद मृतक महिला के परिजनों ने सहारा हॉस्पिटल के बाहर जमकर हंगामा किया पुलिस को सूचना दी इस दौरान सहारा हॉस्पिटल के डॉक्टर और कर्मचारी फरार हो गए। हॉस्पिटल में भर्ती दर्जनों महिला मरीजों को अस्पताल में भगवान भरोसे छोड़ कर भाग गए। आए दिन गरीब परिवारों के मरीज के साथ मौत का तांडव किया जाता है। सिर्फ और सिर्फ अवैध तरीके से पैसे कमाने के चक्कर में जिला महिला अस्पताल में तैनात डॉ. माधुरी त्रिपाठी पर कई बार गंभीर आरोप लग चुके हैं।
लेकिन प्रशासन ने अपनी आखों में पट्टी बांध लिया है इसकी जानकारी लेने के लिए मुख्य चिकित्साअधिकारी राधेश्याम केसरी सीयूजी नंबर तीन बार कॉल किया उन्होंने फोन नही उठाया।वही जब एडी हरिदास अग्रवाल के सीयूजी नंबर पर किया तो उन्होंने बताया इसकी कोई शिकायत नहीं आई है अगर कोई शिकायत आती हैं तो कार्यवाही अवश्य की जायेगी



