मिलेंगे बाल विकास कर्मियों से देखेंगे सुनेंगे उनकी समस्याएं तो रो पड़ेंगे आप भी
आप बीती सुनाते फफक कर रो पड़ी बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की सुपरवाइजर
बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के कर्मचारियों ने तेज की सेवा विस्तार की मांग: परेशान कर्मी भुखमरी के मुहाने पर
22 साल से विभाग में तैनात रहे हैं कर्मचारी, भविष्य को लेकर अनिश्चितता के गहरे अंधेरे में हैं
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता

state desk lucknow ::

बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के ब्लॉक परियोजना कार्यालयों में तैनात सीडीपीओ, सुपरवाइजर और बाबु की संविदा के आधार पर तैनाती है। इस बार निदेशालय से इन लोगों के सेवा विस्तार का आदेश नहीं आया है, जिससे इन सभी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है और नौकरी जाने की चिंता अलग से सताने लगी है।
बीस दिन पहले परेशान कर्मियों ने लखनऊ में प्रदर्शन किया था और 31 जुलाई को निदेशालय में ज्ञापन दिया। इसके अलावा, मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को वे लोग पहले से ज्ञापन सौप चुके हैं मग़र उन्हें राहत नहीं मिल पाई है। कर्मचारी भुखमरी के मुहाने पर जा पहुंचे हैं।
भुखमरी के कगार पर बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के कर्मी: सेवा विस्तार की आस में हैं संघर्षरत
बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के कर्मचारियों की आंखों में आजकल एक ही सवाल है: “हमारे बच्चों का क्या होगा?” संविदा पर तैनात ये कर्मी जिनका जीवन अब अनिश्चितता की अंधेरी गलियों में भटक रहा है, अपने परिवार के लिए रोटी का इंतजाम कर पाने में असमर्थ हो गए हैं।
लखनऊ में जब इन कर्मियों का समूह सड़कों पर उतर आया, तो उनके चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। निदेशालय से सेवा विस्तार का आदेश न मिलने के कारण इन कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है, और नौकरी जाने का खतरा सिर पर मंडरा रहा है।
एक कर्मी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि वह एक छोटे से किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं, ने बताया, “मेरे बच्चे रोज़ मुझसे पूछते हैं, पापा, अब हमारे स्कूल की फीस कैसे भरोगे?” उनकी आवाज़ में बेहद दर्द था। उन्हें यह भी डर सता रहा है कि मकान मालिक उन्हें घर से बाहर न निकाल दे, क्योंकि अब वह किराया नहीं चुका पा रहे हैं।
वहीं एक सुपरवाइजर जो 22 वर्षों से इस विभाग में कार्यरत हैं, कहती हैं, “मैंने अपने बच्चों के लिए बड़े सपने देखे थे। अब वो सपने बिखरते हुए नज़र आ रहे हैं। मेरे पास बच्चों की किताबें और उनके स्कूल की फीस भरने के पैसे नहीं बचे हैं।”
ये कहानियां सिर्फ़ इन्हीं दोनों कर्मियों की नहीं हैं, बल्कि उन कई कई दर्जन कर्मचारियों की हैं जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार से लगातार ज्ञापन और प्रदर्शन के बावजूद अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
हर दिन, इन कर्मचारियों के घरों में एक ही सवाल गूंजता है: “आगे क्या होगा?” वे अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हैं, और इस अनिश्चितता में जी रहे हैं कि कल उनके पास भोजन के लिए पैसे भी होंगे या नहीं।
सरकार से इन कर्मियों के संगठन की पदाधिकारी रजनी ने मांग है कि कर्मियों के सेवा विस्तार को तुरंत मंजूरी दी जाए और वेतन की व्यवस्था की जाए। यह सिर्फ़ उनका हक़ नहीं, बल्कि उनके बच्चों के भविष्य के लिए बहोत जरूरी है।
आज ये कर्मी भुखमरी के कगार पर खड़े हैं, और यदि समय रहते उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो स्थिति और भी विकट हो सकती है। यह समय सरकार के लिए एक सुनहरा मौका है कि वह इन कर्मचारियों की पीड़ा को समझे और उनके परिवारों को इस संकट से उबारने के लिए कदम उठाए।
इन कर्मियों की आंखों में धुंधली हो रही उम्मीद की किरणें :
इन कर्मचारियों के आँखों में उम्मीद की किरणें धुँधलाने लगी हैं, बात जब नौकरी की हो रही हो तो उनकी आंखे डबडबा उठती हैं। जवाहर भवन स्थित निदेशालय पर अपनी समस्याओं के निराकरण की मांग के समर्थन में धरना देने पहुची एक सुपरवाइजर फफक कर रो पड़ी। उसे सम्भालने में साथ में पहुंची अन्य सुपरवाइजरों की आंखे भी भर आईं।

एक साल से वेतन न मिलने से परेशान मुख्य सेविका वंदना गुप्ता अपनी व्यथा कहते-कहते रो पड़ीं। उनका दर्द तब और छलक पड़ा जब बताया कि बच्चे किसी चीज की मांग करते हैं और पैसे के अभाव में उन्हें दिला नहीं पातीं। अब बच्चों को क्या पता कि मम्मी को एक साल से तनख्वाह ही नहीं मिली है।
यह व्यथा सिर्फ वंदना गुप्ता की नहीं है बल्कि 126 मुख्य सेविका और 90 क्लर्कों की है जो पिछले एक साल से वेतन न मिलने के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। बीते दिनों धरना स्थल पर बैठीं वंदना गुप्ता कहती हैं कि उनकी नियुक्ति बाकायदा विज्ञापन और इंटरव्यू के जरिए हुई थी। 22 सालों से निर्बाध सेवा देने के बाद भी अभी तक उन्हें परमानेंट नहीं किया गया। अब तो पिछले एक साल से मानदेय भी नहीं मिला। वंदना अपनी बात बताते वो फफक कर रोने लगीं। कहती हैं कि उम्र के इस पड़ाव में अब जाएं तो जाएं कहां। उम्र का सुनहरा समय विभाग की सेवा में लगा दिया। बावजूद इसके नियमतीकरण नहीं किया गया जबकि आंगनबाडी कार्यकत्रियों को समायोजित कर परमानेंट कर दिया गया।
2700 की भर्ती में समायोजित करे सरकार
कर्मचारियों के संगठन का कहना है कि इसमे कर्मियों का क्या दोष है इन्हें सरकार आखिर किस गलती की सजा दे रही है। सभी नियमों और शर्तों को पालन करते हुए सरकार ने नियुक्त की थी। हर साल नवीनीकरण भी किया जाता था पर एक साल से रोक दिया गया। सभी कर्मी पूरी शिद्दत के साथ विभागीय कार्य कर रही हैं, उन्हें वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। बिना वेतन का आखिर किस तरह से परिवार चलाएं। फीस के अभाव में बच्चों की पढ़ाई वेतन के बिना रुका हुआ है। वो कहती हैं कि जिन आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को ज्वाइन कराया गया था आज वो ही कार्यकत्रियां सुपरवाइजर बनने की श्रेणी में आ गई हैं और सुपरवाइजरों को परमानेंट तो दूर अब वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। एक ओर तो सरकार महिला सशक्तिकरण की बातेँ करती है मगर विभागीय संविदा पर तैनात सुपरवाइजर को स्थाई नहीं किया गया। उनकी मांग है कि 2700 सुपरवाइजरों की भर्ती में सभी का समायोजन किया जाए।
इस दौरान वंदना गुप्ता, नीतू सिंह, निवेदिता सिंह, सुषमा पाण्डेय, लता, अनीता सिंह, डॉ अल्पना, गीता, सुमिता वर्मा, सुषमा वर्मा, निशी द्विवेदी, मिताली सिंह, साधना साहू, अंकिता श्रीवास्तव, गरिमा राजन, तृप्ति पांडे, दीपाली सिंह, सुनीता सिंह लिपिक इकबाल, प्रदीप पांडे, लालमन, अशोक त्रिपाठी आदि भी अपनी व्यथा बताते निराश हो उठते हैं।
क्या कहते हैं निदेशालय के अफसर :
बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार की निदेशक सरनीत कौर ब्रोका ने बताया कि कर्मियों का मांग पत्र प्रमुख सचिव को भेज दिया गया है। कोई भी निर्णय शासन स्तर से ही लिया जाएगा, निदेशालय इसमे कुछ भी नहीं कर सकता है।
जान लीजिए आप भी कि कब क्या हुआ
• प्रदेश भर में संविदा पर 126 मुख्य सेविका और 90 संविदा लिपिक तैनात हैं। इनकी कुल मिलाकर संख्या कुल 216 हैं जिनको एक साल से वेतन नहीं मिला। इनकी तैनाती वर्ष 2003 में विज्ञापन में हुई थी। मुख्य सेविका के लिए योग्यता बीए है। सुपरवाइजर को 24680 रुपए मानदेय मिलता है। अब तक इन्हें नौकरी करते 22 साल हो चुके हैं।

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