बाबू ईश्वर शरण अस्पताल में हर तीसरे मरीज को लगाया जा रहा महंगा इंजेक्शन
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता

गोण्डा। जिले के बाबू ईश्वर शरण अस्पताल की इमरजेंसी मरीजों के इलाज के नाम पर महंगाई का इंजेक्शन लगाया जा रहा है। यहां इमरजेंसी में आने वाले हर तीसरे मरीज को महंगे और रटे-रटाए इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ इसे कभी जीवनरक्षक तो कभी एंटीबायोटिक बताकर मरीजों के तीमारदारों को तुरंत बाहर की मेडिकल दुकानों से खरीदने को मजबूर कर देते हैं। बताया जा रहा है कि इन इंजेक्शनों की वास्तविक कीमत 250 रुपये होती है, लेकिन अस्पताल के बाहर स्थित मेडिकल स्टोर पर इन्हें तीन गुना अधिक कीमत पर बेचा जाता है।
सूत्रों के मुताबिक, इस महंगे इंजेक्शन के पीछे कमीशनखोरी का खेल चल रहा है। जिन मेडिकल स्टोरों पर यह दवा उपलब्ध होती है, वहां से इसे लिखने वाले डॉक्टरों और स्टाफ को मोटा कमीशन मिलता है।
बाबू ईश्वर शरण अस्पताल के स्वशासी मेडिकल कॉलेज से जुड़ने के बाद यहां मरीजों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। बढ़ती भीड़ के साथ इमरजेंसी में अनियमितताओं का भी विस्तार हो गया है। गंभीर हालत में मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचने वाले तीमारदारों को पहले बीमारी की गंभीरता बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती है। इसके बाद कुछ देर में एक दवा पर्ची थमा दी जाती है, जिसमें का वह खास इंजेक्शन भी शामिल होता है, जिसे हर तीसरे मरीज को लगाया जा रहा है। खास बात यह है कि यह इंजेक्शन किसी भी तरह की विशेष बीमारी के इलाज के लिए अनिवार्य नहीं है। बल्कि इसे इसलिए लिखा जाता है क्योंकि इससे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता और इसे धड़ल्ले से किसी भी मरीज को लगाया जा सकता है।
आम तौर पर इमरजेंसी में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ही मरीजों का इलाज करते हैं, लेकिन यहां ड्यूटी पर न होने के बावजूद कुछ डॉक्टर इमरजेंसी के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। मौका मिलते ही वे मरीजों को महंगे इंजेक्शन और दवाएं लिख देते हैं, जिनकी खरीदारी सिर्फ बाहर स्थित खास मेडिकल स्टोर्स से ही की जाती है। बदले में डॉक्टरों को इन दुकानों से अच्छा-खासा कमीशन मिलता है। अस्पताल में दवाइयों के नाम पर कमीशनखोरी का यह पहला मामला नहीं है। पूर्व में भी तत्कालीन अपर निदेशक के निरीक्षण के दौरान एक ही मरीज को कुछ ही घंटों के अंतराल में दो अलग-अलग डॉक्टरों द्वारा हजारों रुपये की दवाएं लिखने का मामला सामने आया था। इस मामले में जांच के आदेश भी दिए गए थे, लेकिन समय के साथ जांच ठंडे बस्ते में चली गई और दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इस पूरे मामले पर अस्पताल के सीएमएस डॉ. अनिल तिवारी ने कहा कि उनके संज्ञान में अब तक ऐसा कोई मामला नहीं आया है। लेकिन यदि ऐसा हो रहा है तो इसकी जांच कराई जाएगी और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इस कमीशनखोरी का सबसे बड़ा खामियाजा उन गरीब मरीजों को भुगतना पड़ता है, जो पहले ही महंगाई की मार से जूझ रहे हैं। कई बार मरीजों के परिजन उधार लेकर या किसी से कर्ज मांगकर दवा खरीदने को मजबूर हो जाते हैं।

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