जांबिया देश में भी गूंजा गोंडा का अपनापन, अवधी अभिवादन ने जीते दिल
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता
Gonda News
गोंडा। केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने जांबिया के दौरे के दौरान भारतीय संस्कृति और गोंडा की लोकभाषा का जादू बिखेरकर लोगों का दिल जीत लिया। लुसाका स्थित भारतीय उच्चायोग के एक कार्यक्रम में बतौर अतिथि पहुंचे मंत्री ने वहां की सभा को न सिर्फ भारतीयता का संदेश दिया, बल्कि गोंडा और अवध क्षेत्र के अनूठे संस्कार और सभ्यता को भी दुनिया के सामने रखा।
कार्यक्रम के दौरान एक हृदयस्पर्शी घटना घटी जिसने सभी को भावुक कर दिया। जब मंत्री ने उपस्थित लोगों से पूछा कि क्या कोई भारत का है, तो एक व्यक्ति ने बताया कि वह लखनऊ से है। मंत्री ने धन्यवाद देते हुए, फिर से पूछा कि क्या कोई गोंडा या उसके आसपास का भी है। इस पर एक महिला ने उत्साहपूर्वक कहा, “मैं गोंडा से हूं।”
यह सुनकर कीर्तिवर्धन सिंह का चेहरा खिल उठा। महिला ने अपना परिचय डुमरियाडीह की निवासी और एक ब्राह्मण परिवार से बताया। मंत्री ने तुरंत पहचानते हुए कहा, “डुमरियाडीह तो मनकापुर के पास है और वह हमारे ही निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है।” महिला का छह साल से जांबिया में रहने का अनुभव साझा करते हुए अपनी मिट्टी से जुड़े इस छोटे से मिलन ने वहां का माहौल और भी घरेलू बना दिया।
महिला ने अपने घर के नेता को सामने देख अवधी में कहा, “आईथे, जाईथे।” इस पर मंत्री ने मुस्कुराकर ‘पायलागी’ कहकर पारंपरिक अभिवादन किया। महिला भी जवाब में ‘पायलागी’ बोली, तब मंत्री ने हंसते हुए कहा, “आप नहीं, हम ही आपके पायलागी करते हैं।” यह सुनकर सभी समझ गए कि यह संस्कृति और संस्कार की गहरी भावना थी। इस पूरे घटनाक्रम को मंत्री ने सोशल मीडिया पर साझा किया, जिससे लोगों में अपनेपन की भावना जाग उठी।
जांबिया में भारतीयों के इस स्वागत और अवधी बोली के उपयोग ने विदेशों में भी भारतीयों के बीच एकता और आत्मीयता की भावना को गहरा किया। इस कार्यक्रम ने न केवल भारत और जांबिया के सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूती दी, बल्कि यह भी साबित किया कि भाषा और संस्कृति के जरिए अपनापन कहीं भी महसूस किया जा सकता है।
इस भावुक वीडियो के वायरल होते ही गोंडा और आसपास के क्षेत्रों में चर्चा का विषय बन गया। लोगों ने सोशल मीडिया पर राज्यमंत्री की इस सादगी और अपनापन भरे व्यवहार की जमकर सराहना की। विदेश में अपने क्षेत्र के नागरिक से मिलने पर उनके अपनत्व ने न सिर्फ गोंडा, बल्कि पूरे भारत को गौरवान्वित किया। इसे ना सिर्फ एक संयोग के रूप में देखा जा रहा है बल्कि इस बात का प्रतीक है कि भारत की संस्कृति और क्षेत्रीय भाषाएं विदेशों में भी कैसे जुड़ाव और अपनापन लाती हैं। कीर्तिवर्धन सिंह का यह कदम न सिर्फ राजनयिक दृष्टि से, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।



