**आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित,
भूदान आंदोलन में उनके योगदान को किया गया याद**
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता
Gonda News
जिला कांग्रेस कार्यालय में भूदान आंदोलन के प्रणेता और प्रसिद्ध गांधीवादी नेता, भारत रत्न आचार्य विनोबा भावे की जयंती के अवसर पर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष प्रमोद मिश्र ने कहा कि विनोबा भावे, जिन्हें कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के बाद विनायक नरहरि भावे के नाम से जाना गया, ने 1916 में हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़कर महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गए थे। कई बार जेल गए, और 1940 में पांच साल की सजा भी काटी। आज़ादी के बाद 1950 में हरिजनों की मांग पर उन्होंने जमींदारों को भूदान के लिए प्रेरित किया और 4.5 मिलियन एकड़ ज़मीन दान लेकर उसमें से 1.5 मिलियन एकड़ भूमिहीनों में वितरित करवाई।
जिला प्रवक्ता शिवकुमार दुबे ने आचार्य विनोबा भावे के व्यक्तिगत सत्याग्रह का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने देश में गोहत्या पर प्रतिबंध लगवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1958 में आचार्य विनोबा भावे को भारत के पहले रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सगीर खान और अरविंद शुक्ला ने आचार्य जी के त्याग और सादगी की मिसाल दी, जब उन्होंने स्वयं अन्न-जल त्याग कर मृत्यु का वरण किया और वर्धा आश्रम की बहनों ने सामूहिक रूप से उनकी अंतिम विदाई दी।
इस अवसर पर शाहिद अली कुरेशी सभासद, अविनाश मिश्रा, सुभाष चंद्र पाण्डेय समेत अन्य कांग्रेस जनों ने आचार्य विनोबा भावे को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें महात्मा गांधी का सच्चा उत्तराधिकारी बताया। इस गोष्ठी में प्रमुख रूप से विनय प्रकाश त्रिपाठी, चांद खान, वाजिद अली, राजेश त्रिपाठी, हरीराम वर्मा, अबसार अहमद और जानकी देवी सहित अन्य कांग्रेस नेता उपस्थित रहे।



