स्कूल पूर्व शिक्षा ग्रहण कर रहे आंगनबाड़ी केंद्र के दिव्यांग बच्चों के समावेशन से जुड़ा एक प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ आयोजित
जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज कुमार मौर्य की अध्यक्षता में विकास भवन सभागार में आयोजित हुआ कार्यक्रम
दो दिवसीय प्रशिक्षण के लिए गुरुवार रहा पहला दिन
सीडीपीओ और सुपरवाइजरों ने सीखा की कैसे बच्चों को सहज बनाया जाए
दिव्यांग बच्चों की सहजता के लिए आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
विक्रम शिला एजूकेशनल सोसाइटी की स्टेट मैनेजर समर्पिता चौधरी, नीतू, कृष्ण मोहन, सिंह और इंद्र भान तिवारी ने दिया प्रशिक्षण
बाल विकास विभाग के सीडीपीओ और सुपरवाइजरों को विक्रमशिला संस्था ने दिया प्रशिक्षण
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता
Gonda News :
स्कूल पूर्व शिक्षा ग्रहण कर रहे आंगनबाड़ी केंद्र के दिव्यांग बच्चों के समावेशन से जुड़ा एक प्रशिक्षण कार्यक्रम गुरुवार को आयोजित हुआ। विकास भवन सभागार में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए गुरुवार पहला दिन रहा। अध्यक्षता डीपीओ मनोज कुमार मौर्या ने किया।
विक्रम शिला संस्था के प्रशिक्षकों ने बाल विकास विभाग के सीडीपीओ और सुपरवाइजरों प्रशिक्षित किया की कैसे दिव्यांग बच्चों को सहज बनाया जाए।
आगे चलकर दिव्यांग बच्चों की सहजता के लिए यही प्रशिक्षण आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को दिया जाएगा।
बाल विकास विभाग के सीडीपीओ और सुपरवाइजरों को विक्रमशिला संस्था के प्रशिक्षकों ने दिव्यांगता-समावेशन शालापूर्व शिक्षा क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है के बारे में विस्तार से बताया। विक्रम शिला एजूकेशनल रिसोर्स सोसाइटी के मंडल प्रबन्धक कृष्ण मोहन सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान आए सवालों के जवाब दिए। प्रशिक्षिका नीतू ने आवश्यक जानकारी दी और विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 21 के अन्तर्गत समुदाय एवं माता-पिता को यह अवसर प्राप्त है कि अपने बच्चों को विद्यालय में पंजीकृत करवाकर विद्यालयों में उनकी उपस्थिति एवं सहभागिता को सुनिश्चित कर सकें।
दिव्यांगता-समावेशी शालापूर्व शिक्षा एक शिक्षा प्रणाली है जो 3 से 6 साल के आयु वर्ग के लिए जरूरी आंकी गई है।
प्रशिक्षण के बारे में बताते हुए जिला समन्वयक इंद्र भान तिवारी ने कहा कि दिव्यांगताओं के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई है। इसका उद्देश्य है कि समाज में सभी वर्गों के बच्चों को उनके योग्यतानुसार शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर मिले। इस प्रकार की शिक्षा में, दिव्यांग बच्चों के विकास को समाहित किया जाता है और उन्हें समाज में स्थान बनाने के लिए आवश्यक उपकरण और सामाजिक सहायता प्रदान की जाती है।
प्रशिक्षिका स्टेट मैनेजर समर्पिता चौधरी ने कहा कि दिव्यांगता-समावेशी शालापूर्व शिक्षा का महत्वपूर्ण पहलू है कि इससे दिव्यांग बच्चों का स्वाभाविक विकास होता है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे समाज में समाहित होते हैं। इसके अलावा, इस प्रकार की शिक्षा से समाज में न्याय, समानता, और सहयोग की भावना का संवर्धन होता है।
प्रशिक्षकों ने कहा कि दिव्यांगता-समावेशी शालापूर्व शिक्षा का उदाहरण विभिन्न शिक्षण संस्थानों और समाजों में देखा जा सकता है, जहाँ विशेष रूप से डिज़ाइन की गई शिक्षण प्रणालियों के माध्यम से दिव्यांग बच्चों को समाहित किया जाता है और उन्हें उनके पूर्ण पोटेंशियल को साधने का मौका मिलता है।
बच्चों में दिव्यांगता पाँच तरह की दिव्यांगता या विशेष जरुरत देखने को मिलती है। शारीरिक दिव्यांग ता के बारे में प्रशिक्षकों ने बताया कि इसमें बच्चों में शारीरिक क्षमताओं का अभाव होता है जो बच्चों को दैनिक गतिविधियों में कठिनाई पहुंचा सकता है। सामाजिक-भावनात्मक दिव्यांगता के बारे में जानकारी दी गई। बच्चों की सामाजिक और भावनात्मक क्षमताओं में कमी होती है, जो उन्हें सहज सामाजिक संबंधों को बनाने में कठिनाई पहुंचा सकती है। इसमें भाव व्यक्त करने या व्यवहार संबंधित चुनौतियां शामिल होती हैं। 3. संज्ञानात्मक दिव्यांगताः यह दिव्यांगता बच्चों की बौद्धिक क्षमताओं में कमी को दर्शाती है, जो उन्हें सीखने, समस्या समाधान करने, और निर्णय लेने में कठिनाई पहुंचा सकती है।
वाणी और भाषा दिव्यांगता वाले विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के बारे में बताया गया इसमें बच्चों की वाणी और भाषा संबंधित क्षमताओं में कमी होती है, जो उन्हें सहज रूप से अपनी वाणी का उपयोग करने में कठिनाई पहुंचा सकती है।
संवेदी दिव्यांगता के बारे मे जानकारी दी गई कि बच्चों की संवेदनशीलता संबंधित क्षमताओं में कमी होती है, जो उन्हें अपने आसपास की दुनिया को समझने और उससे जुड़ने में कठिनाई पहुंचा सकती है। बाल विकास विभाग के सीडीपीओ अभिषेक दुबे, दुर्गेश गुप्ता, वंदना, नंदिनी घोष, नीतू रावत, सुपरवाइजर उर्मिला चौधरी, सुमिता वर्मा, तृप्ति पांडे, रचना देशवाल, सुषमा, मिताली सिंह, गरिमा राजन, अंकिता श्रीवास्तव, साधना साहू, मीना उपाध्याय, दीपाली सिंह साधना साहू आदि ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग किया
प्रोजेक्टर के जरिए समझाई गई जानकारी ::
दिव्यांगता समावेशन शालापूर्व शिक्षा व दिव्यांगता की समझ बढ़ाने के लिए प्रोजेक्टर के जरिए प्रशिक्षण दिया गया।
जानकारी साझा की गई कि प्रारंभिक बाल्यावस्था के शुरूआती 6 वर्षों में बच्चों का 90% मस्तिष्क विकसित हो जाता है। इस अवधि में वे शारीरिक, संज्ञानात्मक, सामाजिक-भावनात्मक, रचनात्मक और भाषा संबंधित महत्वपूर्ण कौशल विकसित करते हैं। ये कौशल उनके आजीवन सीखने और सफलताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनमें अलग कारणों से विकास में विलंब या दिव्यांगता देखने को मिलती हैं। हम इन्हें विशेष ज़रूरत वाले बच्चे कहते हैं। दिव्यांगता 21 प्रकार की हो सकती है, लेकिन बिना डॉक्टर या विशेषज्ञ के परीक्षण और सर्टिफिकेट के हम किसी भी बच्चे को दिव्यांग नहीं घोषित कर सकते हैं।समर्पिता चौधरी स्टेट मैनेजर, विक्रामशिला एजूकेशन रिसोर्स सोसाइटी, नीतू, कृष्ण मोहन- सिंह मंडल प्रबंधक, इंद्रभान तिवारी – जिला संन्यवक्, विवेक सिंह, प्रशांत सिंह, प्रदीप वर्मा – उप जिला संन्यवक्, शिवम पांडेय ने प्रशिक्षण दिया।



