वरिष्ठ संवाददाता प्रदीप मिश्रा

जवाबदेही से बचने को छोटे कर्मियों को बड़ी बैठकों में साथ ले जा रहे अफसर

Gonda news: बड़ी प्रशासनिक बैंठकें हों या फिर उच्चाधिकारियों की जिलास्तरीय समीक्षा बैठकें इनकी गंभीरता कोई और नहीं बल्कि विभिन्न विभागों के मुखिया अफसर खुद खतम कर दे रहे हैं। इन बैठकों में वो अपनी सीधी जवाबदेही से बचने के लिए मातहतों को साथ लिए जाते हैं।

ऐसे में बड़े काम की साबित नही हो रही बैठकें

जब भी इन अफसरों से उच्चाधिकारी कोई सवाल करते हैं तो वे खुद उसका जवाब देने के बजाय साथ गए छोटे कर्मचारियों की ओर मुड़कर देखने लगते हैं ऐसे में छोटे कर्मियों से सवाल जवाब में बैठक के लिए निर्धारित पूरा समय निकल जाता है और गंभीर बैठकें निष्कर्ष को हासिल नहीं कर पाती। ऐसे में जिले में बैठकों की संख्या भी बढ़ गई है।

(नेहा शर्मा, जिलाधिकारी)

मण्डलायुक्त ने दी है ऐसे ही प्रकरण में नसीहत : मण्डलायुक्त ने ऐसे ही एक बैठक में कहा है कि जिला स्तरीय अधिकारी स्वयं अपने विभाग की समीक्षा पहले से कर लिया करें। उन्होंने विभागाध्यक्षों द्वारा समीक्षा नहीं किए जाने पर चिंता जताई है।

मातहत कर्मचारियों को साथ ले जाने से हो जाती है आपाधापी : मातहत कर्मचारियों को साथ ले जाने से बैठकों में आपाधापी बढ़ जाती है। ऐसे बैठकों में कुर्सियां कम पड़ने लगती है। बीच बैठक में कुर्सियों को नए सिरे से सेट करने में ही बाकी कर्मचारी लगे दिखाई पड़ते हैं।

डीएनसी व डीएचसी की बैठकों में दिख रहा यही नजारा : जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक हो या फिर जिला पोषण समिति की बैठक इनमें सम्बन्धित विभाग के विभागाध्यक्षों के साथ बैठक करने के नियम है। ताकि डीएम इन अफसरों से सीधी बात करके उनके अधिकारियों से आ रही अड़चनों को जाने आर उसे दूर करने की रणनीति बन सके। मगर जिलास्तरीय अधिकारियों के अलावा ब्लॉक और फिर ब्लॉक के भीतर तैनात छोटे कर्मचारियों को बुलाने से बैठक कमजोर हो जा रही है।

अपनी जगह मातहतों को बड़ी बैठकों में भेजने का बढ़ा है चलन : बड़ी बैठकों में अपनी जगह मातहतों को भेजने का चलन भी अफसरों में बढ़ा है। ऐसे बैठकों के समय सम्बन्धित अधिकारी या तो अवकाश आदि के कारण जिले में नहीं रहते या फिर किसी अन्य उच्चाधिकारी अथवा शासन व प्रशानिक दौरों में व्यस्तता को दिखाकर अपनी जगह दूसरे मातहत कर्मियों को भेज देते हैं।

उच्चाधिकारी ध्यान देते तो लग सकती है रोक : उच्चाधिकारी यदि इस बात का ध्यान देते कि कौन से लोग उन बड़ी बैठकों का हिस्सा बन रहे हैं तो शायद खुद के जगह मातहतों को भेजने और खुद के जगह मातहतों को जवाब देने के लिए खड़े करने का चलन नहीं बढ़ता।
कोट
उच्च प्रशासनिक बैठकों को चुस्त, समयबद्व और रणनीतिक होना जरूरी है। इसकी गंभीरता को बनाए रखा जाना चाहिए इससे जुड़े निर्देश दिए गए हैं।
नेहा शर्मा, जिलाधिकारी

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