“जल, जंगल, जमीन के साथ ग्रह बनाम प्लास्टिक सद्भाव”
(एक क़दम तुम चलो, एक क़दम हम ,
दो क़दम धरा चले , चार क़दम गगन,
पांच तत्व संग पांच क़दम सृष्टि के
महक उठेगी ज़िन्दगी,मन मलंग मगन।)
शालिनी सिंह
सर्दियों के सुखद एहसास के बाद बसन्त की आहट हमें प्रकृति के सानिध्य में समेटने का हर प्रयास करती दिखाई देती है। मानो ये धरा कहती है कि मेरे करीब आओ ,मुझे जानो और मुझमें अपना जीवन तलाशकर मुझसे ही प्रेम करो। शायद कुछ इसी ख़्याल से कैफ़ी आज़मी साहब की क़लम ने इस गीत को जन्म दिया हो……
बहारों मेरा जीवन भी सँवारों, बहारों
कोई आए कहीं से, यूँ पुकारो, बहारों …
तुम्हीं से दिल ने सीखा है तड़पना
तुम्हीं को दोष दूंगी, ऐ नज़ारों, बहारों …
सजाओ कोई कजरा, लाओ गजरा
लचकती डालियों तुम, फूल वारो, बहारों …
रचाओ मेरे इन हाथों में मेहंदी
सजाओ माँग मेरी, या सिधारो, बहारों …
न जाने किस का साया दिल से गुज़रा
ज़रा आवाज़ देना राज़दारो, बहारो
आख़िरी पंक्ति में मानो प्रकृति का साया ही दिल से होकर गुजरता है जो असंख्य रहस्य, जीवन के रंग, उमंग समेटे है और हमसे कह रहा हो कि तुम्हारा जीवन मैं संवार दूं पर तुम मुझे प्यार दो।
ये प्यार क्या हो सकता है? कभी सोचा है आपने । सोचकर देखिए हमारी धरा हमसे अपनी खूबसूरती का संरक्षण मांग रही है ।
जल, जंगल,मिट्टी,और हवा ही शुद्ध और संरक्षित न रही तो मनुष्यता शून्य,संवेदनहीन हो जाएगी क्योंकि एक नया विकराल संघर्ष शुरू होगा जीवन जीने के लिए जो आग की लपटों की तरह होगा।
पृथ्वी दिवस मनाने की ज़रूरत हमें इसी लिए पड़ी क्योंकि कहीं न कहीं हम आग की उसी लपटों में बैठने की तैयारी खुद ही कर रहे हैं बस हमें अनुमान नहीं है। देश- दुनिया के पर्यावरणविदों की फिक्र इसी बात को लेकर है जो कि जायज़ भी है और ज़रूरी भी।
जैसे-जैसे हम पर्यावरण जागरूकता और कार्रवाई के वैश्विक प्रतीक पृथ्वी दिवस के करीब आ रहे हैं, यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम ऐसे सभी प्रयासों में शामिल हों जो भावी पीढ़ियों के लिए हमारी पृथ्वी की भलाई सुनिश्चित करें। इसी भावना के साथ, उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग के मार्गदर्शन में ग्रेटर शारदा सहायक विकास प्राधिकरण विभाग “जल, जंगल, जमीन के साथ ग्रह बनाम प्लास्टिक सद्भाव” शीर्षक से पृथ्वी दिवस शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। आई ए एस डॉ हीरा लाल ( अध्यक्ष एवं प्रशासक एवं विशेष सचिव. सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उ.प्र ) जिन्होंने हमेशा मिट्टी से जुड़े रहकर काम करना चुना उनके समन्वयक प्रयास और पहल पर हम सब इस कार्यक्रम का हिस्सा बन रहे हैं ।
शिखर सम्मेलन के विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए यूएनडीपी, विश्व बैंक, आगा खान फाउंडेशन, वॉटरएड, आईसीआईसीआई फाउंडेशन, यूनिसेफ, सीएमएस, इरिगेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित संगठन उपस्थित होंगे।
ये साझा प्रयास न सिर्फ संगठनों तक सीमित रहने चाहिए बल्कि इस पृथ्वी के एक एक वासी के मन का संकल्प भी होना चाहिए कि हमारी इस धरा को हम समर्पित होकर जीवन जिएंगे ,इसे संरक्षित करेंगे ,इसे संवारेंगे ।
गीत-संगीत की दुनिया से गहरा नाता रखने वाले रेडियो सुनने वाले हमारे देशभर के श्रोताओं ने गीतों के एहसास के साथ अपनी ज़िंदगी के सुख-दुःख में रंग भरने और सुकून तलाशने की कोशिश की है उन सभी के बीच काम करते हुए हमने भी महसूस किया है कि संगीत ने हमेशा हमें प्रकृति से जोड़ा है । नदियों की कल-कल हो या झरनों का बहता पानी , रिमझिम-रिमझिम रुनझुन-रुनझुन बारिश के एहसास हो या पवन पुरवाई ।
जब ऐसे गीतों को सुनकर हम प्रकृति के बीच पहुंच जाते हैं और गज़ब का सुकून भरा एहसास हमें तरोताज़ा कर देता है तो हक़ीक़त कैसी होगी…….. तभी तो दिल कह उठता है ….. नीले गगन के तले धरती का प्यार पले..
धरती का प्यार पलता रहे इसके लिए एकजुट होकर संकल्पित हों इस पृथ्वी दिवस से ही चलिये एक नई शुरुआत की जाए।
“जागरूक हुआ जाए और जागरूक किया जाए।”



