पीड़ितों की जुबानी – ‘हमने ज़िंदगी की पूंजी गंवा दी’
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता, गोंडा

Gonda News

देवीपाटन मंडल में ज़मीन घोटालों का सबसे दर्दनाक पहलू वे लोग हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी की जमा पूंजी ‘एक टुकड़ा ज़मीन’ के सपने में लगा दी — लेकिन उन्हें मिली ठगी, फरेब और अंतहीन न्याय की तलाश। गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती से दर्जनों ऐसे पीड़ित सामने आए हैं, जो अब तक कोर्ट, थाने और तहसीलों के चक्कर काट रहे हैं।

“हमारी ज़मीन किसी और के नाम रजिस्ट्री हो गई”
खरगूपुर बाजार निवासी शत्रुहन लाल तिवारी का मामला इसका जीवंत उदाहरण है। उन्होंने जब अपने पुश्तैनी खेत के दस्तावेजों की छानबीन की, तो पता चला कि उनकी ज़मीन का बैनामा किसी और के नाम पर हो चुका है।
इसमें रुस्तम मिश्र और शशांक तिवारी जैसे स्थानीय नाम आरोपितों में दर्ज हुए। पुलिस ने जांच के बाद पांच लोगों पर मुकदमा भी लिखा, लेकिन आज तक तिवारी को न जमीन वापस मिली, न ठगाई गई रकम।

“फोन पर मालती देवी बनी और 43 लाख लेकर फरार हो गई”
भगवानदीन पुरवा, खरगूपुर के रहने वाले मुन्ना को तो बेहद शातिर तरीके से निशाना बनाया गया।
मध्यप्रदेश निवासी मालती देवी के नाम की ज़मीन दिखाई गई। सौदा तय हुआ और 43 लाख रुपये दे दिए गए। अप्रैल में जब रजिस्ट्री के लिए बहराइच उपनिबंधक कार्यालय पहुंचे, तो पता चला कि न मालती असली है, न दस्तावेज़।
फोन पर बात करने वाली महिला, उसका दामाद अशोक, काजल व दुर्गेश चौहान सभी फर्जी निकले। यही ज़मीन दिखाकर गोंडा के राजा मुहल्ला निवासी गुलाम नबी से 15 लाख रुपये और ठग लिए गए।

“78 लाख रुपये दिए, लेकिन जमीन नहीं मिली”
मोतीगंज के गोविंदपारा निवासी अरविंद मिश्र ने दयानंद नगर निवासी आकाश अग्रवाल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने जमीन खरीदने के लिए 78 लाख रुपये नकद व बैंक से दिए, लेकिन बाद में आरोपी मुकर गया।
पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी तो की, लेकिन न ज़मीन दिला पाई, न पैसे वापस। अब मामला कोर्ट में लंबित है और जमानत तक रद्द हो चुकी है।

“सपनों का आशियाना बना सपना ही रह गया”
बलरामपुर और श्रावस्ती से भी ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां गरीब मज़दूरों ने जीवन भर की पूंजी जोड़कर ज़मीन खरीदी और बाद में पता चला कि ज़मीन सरकारी है, विवादित है या पहले से बेची जा चुकी है।
एक वृद्ध दंपती ने बताया, “बेटे की शादी के लिए ज़मीन बेची, और बदले में मिली नकली ज़मीन। अब न शादी हुई, न घर बचा।”

पुलिस की सीमाएं और पीड़ितों की पीड़ा
ज्यादातर मामलों में पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की, कुछ आरोपितों को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन धनवापसी (रिकवरी) न हो पाने से पीड़ितों को कोई राहत नहीं मिल सकी। कोर्ट में मुकदमे लंबित हैं और थानों की जांच रफ्तार नहीं पकड़ पा रही।

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