प्रारंभिक हस्तक्षेप से संवरता है न्यूरोविकासात्मक विकारों से जूझते बच्चों का भविष्य: असिस्टेंट प्रोफेसर नबनीता बरुआ
बाल विकास की सफलता में समय पर उपचार है सबसे बड़ी कुंजी
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता
स्टेट डेस्क, लखनऊ। न्यूरोविकासात्मक विकारों से पीड़ित बच्चों के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप (Early Intervention) एक ऐसा माध्यम बन चुका है, जो उनके जीवन की दिशा और गुणवत्ता दोनों को सकारात्मक रूप से बदल सकता है। इस संबंध में कमांड अस्पताल (सेंट्रल), लखनऊ स्थित प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्र की मुख्य नैदानिक पर्यवेक्षक एवं एमिटी यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश, लखनऊ की असिस्टेंट प्रोफेसर (क्लिनिकल साइकोलॉजी) श्रीमती नबनीता बरुआ ने बताया कि समय पर दिया गया समग्र उपचार बच्चों के सामाजिक, बौद्धिक और व्यवहारिक विकास में उल्लेखनीय परिवर्तन ला सकता है।
प्रारंभिक हस्तक्षेप की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
श्रीमती बरुआ के अनुसार, “जीवन के पहले कुछ वर्ष मस्तिष्कीय विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवधि में मस्तिष्क में प्लास्टिसिटी (लचीलापन) अधिक होता है, जिससे न्यूरल नेटवर्क तेजी से विकसित होते हैं। यदि इस अवधि में हस्तक्षेप किया जाए तो यह बच्चों के व्यवहार, संप्रेषण और सामाजिक कौशल में आश्चर्यजनक सुधार ला सकता है।”
ऑटिज़्म, अधिगम अक्षमता और बौद्धिक चुनौती से जूझते बच्चों के लिए यह हस्तक्षेप जीवन रेखा साबित हो सकता है, ऐसा नबनीता बरुआ मानती हैं। उन्होंने बताया कि जिन बच्चों को प्रारंभिक अवस्था में ऑटिज़्म या अधिगम अक्षमता की पहचान हो जाती है और उन्हें वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित समर्थन मिलता है, वे शिक्षा और सामाजिक जीवन में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं।
नैदानिक मनोवैज्ञानिकों की प्रमुख भूमिका
श्रीमती बरुआ ने बताया कि एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक न केवल बच्चे की समग्र मूल्यांकन प्रक्रिया करता है, बल्कि उसकी व्यक्तिगत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक व्यक्तिगत उपचार योजना (Individualized Treatment Plan) तैयार करता है। उन्होंने बताया कि एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (ABA), कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (CBT) और फैमिली थैरेपी जैसी वैज्ञानिक विधियाँ बहुत कारगर सिद्ध हुई हैं।
“हम सिर्फ बच्चों के साथ नहीं, उनके परिवारों के साथ भी कार्य करते हैं। माता-पिता को प्रशिक्षित करना और उन्हें बच्चे की विशेष ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा है,”नबनीता बरुआ अस्सिटेंट प्रोफेसर
विशेष शिक्षकों और पुनर्वास विशेषज्ञों की समन्वित भूमिका
इस प्रक्रिया में विशेष शिक्षकों और पुनर्वास विशेषज्ञों का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष शिक्षक व्यक्तिगत शैक्षणिक योजनाएँ (IEPs) के माध्यम से बच्चों की सीखने की क्षमता के अनुसार उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं। वहीं स्पीच थैरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट और फिजिकल थेरेपिस्ट बच्चों की संप्रेषण, संवेदी और मोटर क्षमताओं को सशक्त बनाते हैं।
बहु-विषयक सहयोग से बनता है सफलता का रास्ता
श्रीमती बरुआ मानती हैं कि जब क्लिनिकल मनोविज्ञान, विशेष शिक्षा और पुनर्वास सेवाएं एक समन्वित ढांचे में मिलकर कार्य करती हैं, तभी बच्चे को सम्पूर्ण रूप से सहायता मिल पाती है। उन्होंने यह भी बताया कि एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ और कमांड अस्पताल के बीच एमओयू के तहत संचालित यह केंद्र इसी समन्वय की एक उत्कृष्ट मिसाल है।
प्रेरणास्रोत बनीं विशेषज्ञ महिलाएं
इस मुहिम में श्रीमती बरुआ के साथ डॉ. नीलम बंसल, असिस्टेंट प्रोफेसर विशेष शिक्षा, एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर, और डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा भी विशेष रूप से सहयोग कर रही हैं। इनकी सहभागिता ने न केवल शिक्षण बल्कि पुनर्वास की दिशा में व्यावहारिक दृष्टिकोण को मजबूती प्रदान की है।



