स्त्रीत्व के बिना यह धरा है अधूरी
सन्नाटे ही लौटते वहां ,
जहां न ममता, करुणा दया हो।
हैं पारलैंगिक स्त्रियां ये ,
ये भी स्त्रीत्व की हैं परिभाषा
जला रखी है इन्होंने भी लौ ,
तस्वीर बदलने की ठानी,
संविधान से सोच तक रौशन कर देंगे,
है इनकी ये ऐसी अभिलाषा
पारलैंगिक हैं , अंतर्मन की औरत ,
सदा है इनमें ज़िंदा।”

इन पंक्तियों के साथ देश की समस्त महिलाओं और सभी ट्रांस महिलाओं को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Women Day’s 2022: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस अवसर पर रेडियो जंक्शन से मैं शालिनी सिंह सभी स्त्रियों के संघर्ष और सफलता को सलाम करती हूं साथ ही विशेष रूप से सलाम करती हूं उन सभी ट्रांस महिलाओं के जज़्बे को जिन्होंने अपने स्त्रीत्व की पहचान के लिए न सिर्फ स्वंय के लिए संघर्ष किया और पहचान बनाई बल्कि कइयों के लिए प्रेरणा भी बनी हैं। अंतर्मन की स्त्री को अपना वजूद साबित करना बेहद कठिन है क्योंकि ट्रांसजेंडर महिलाओं के अंतर्मन की स्त्री को समझने के लिए ट्रांसपेरेंट अंतर्मन चाहिए । सदियों से समाज को स्त्री काया ,स्त्री वेश में स्त्री को देखने ,समझने महसूस करने अभिव्यक्त करने की क्षमताओ में पारंगत पाया गया है लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। अंतर्मन की स्त्रियों को भी वही सम्मान ,वही प्यार,वही सुरक्षा देकर उनके मनोभावों को समझना सीखना होगा। इस बार महिला दिवस मनाने की थीम है “एक स्थायी कल के लिए लैंगिंक समानता ” । जब बात लैंगिक समानता की आती है तो ट्रांस महिलाओं के स्त्रीत्व को भी जेंडर इक़्वालिटी के दायरे में प्राकृतिक,सामाजिक और संवैधानिक हर नज़रिए से देखने के लिए विचार करना ही होगा। जननी होकर ही स्त्री होने का गौरव मिलेगा ये परिभाषा नए समाज के खाँचे में फिट नहीं बैठेगी। इस मुद्दे पर लम्बा विमर्श चाहिए जो लगातार किया ही जायेगा किंतु आज स्त्रीत्व के सम्मान के लिए मेरी क़लम बाग़ी हो चली है क्योकि ये आवाज़ उठा रही है ट्रांसमहिलाओं के सम्मान, सुरक्षा, और समानता के हक़ के लिए।
दोस्तों! मातृत्व और स्त्रीत्व दोनों पहलुओं को अलग अलग समझना होगा। मातृत्व बिना स्त्रियोचित भावों के अधूरा है इस बात का प्रमाण यही समझ लीजिए कि पुरुष की बराबरी करने की होड़ में असंख्य स्त्रियां स्त्रीत्व भुला बैठी हैं और मातृत्व सुख लेकर भी स्त्रीत्व से परे एक अलग फेमिनिज़्म में जी रही हैं ।दूसरी तरफ ट्रांसजेंडर महिलाएं मातृत्व से वंचित होकर भी स्त्रीत्व को संवारने में ,साबित करने में संविधान से समाज तक वजूद के लिए घुटन भरी कैद में रहकर लड़ रही हैं। कुछ सफ़ल भी हुई हैं सफलता की इबारत लिखती इन ट्रांसजेंडर महिलाओं को हम दिल से सलाम करते हैं।
ये वो महिलाए हैं जिनकी जंग पैदा होने के साथ ही शुरू हो जाती है
सबसे पहले ख़ुद से
फिर परिवार से
फिर सहपाठी व दोस्तों से
फिर रिश्तेदारों से
फिर समाज से
खुद के ही अस्तित्व व पहचान को ख़ुद में ही टटोलती, ढूंढती कभी बेतहाशा खुद से दूर भागने की व ख़ुद को मिटाने की नाक़ाम कोशिश करती उन महिलाओं से आपको मिलवाते हैं जिनके बारे में बहुत कम लिखा, पढ़ा, जाना, समझा व बोला जाता है, लेकिन इस सच्चाई को न नकारा जा सकता है और न ही नकारना चाहिए क्योंकि ये भी इसी समाज का अटूट हिस्सा हैं, जिस सोसाइटी में हम और आप रहते हैं
इनके बारे में कोई भी राय या धारण बनाने से पहले, इनके बारे में जानना व समझना बेहद जरूरी है
रेडियो जंक्शन का लगातार यही प्रयास रहा है कि समाज में इन महिलाओं को उचित स्थान, सम्मान व इज़्ज़त मिले जिसकी वो हक़दार हैं ।

धनंजय चौहान- पंजाब यूनिवर्सिटी में ट्रांसजेंडर के मूलभूत अधिकारों की लड़ाई विद्यार्थी जीवन से ही लड़ते हुए यूनिवर्सिटी से न सिर्फ कई विषयों में खुद मास्टर्स किया बल्कि अन्य ट्रांसजेंडरों के लिए भी उच्च शिक्षा हेतु एक बेहतर माहौल तैयार किया और आज वर्तमान में विश्विद्यालय में ही ट्रांसजेंडर रिसर्च इन यूनिवर्सिटी/इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज के प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही हैं। पंजाब के चंडीगढ़ में रहने वाला लड़का जो ट्रांसजेंडर था और अपने अधिकारों के लिए छात्रसंघ स्तर पर आंदोलन करता रहा उसने शिक्षा के मंदिर में रहकर ही अधिकारों की लड़ाई लड़ी और अपने ही शहर और कॉलेज के हर झरोखे में अन्तर्मन की स्त्री को अपनी आज़ादी के सपने संजोए कनखियों से झांकते देखा। संवैधानिक अधिकार मिलते ही अपनी पहचान उजागर की लेकिन नाम नहीं बदला ताकि लोगों को सनद रहे कि धनंजय चौहान जब तक जिंदा है अधिकारों की लड़ाई जारी रहेगा। आज चंडीगढ़ में ट्रांसजेंडर को लेकर तस्वीर अन्य जगहों की तुलना में बेहतर है क्योंकि यहाँ आवाज़ विश्वविद्यालय परिसरों से गूंजी थी। खैर धनंजय विभिन्न भाषाओं की जानकार होने के साथ संगीत और नृत्य में भी पारंगत हैं और विभिन्न राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सम्मानित अपने स्त्रीत्व के साथ समाज को एक दिशा दे रही हैं जो हमें गौरवान्वित करती है।

पायल राठवा – गुजरात के आदिवासी क्षेत्र से आदिवासी समाज में जन्मी ट्रांसजेंडर पायल राठवा आज वर्ली आर्टिस्ट के तौर पर न सिर्फ आदिवासी कला को बचाने का प्रयास कर रही हैं बल्कि अपने अस्तित्व की लड़ाई भी लड़ रही हैं। पायल ट्रांसजेंडर को शिक्षित होने पर बल देती हैं, प्रेरित करती हैं और जब वो घरों , सड़कों चहारदीवारों पर रंगों के साथ अटखेलियां करती हैं तो तितलियों सरीखी लगती हैं। उनका वो प्राकृतिक अंदाज़ और उनकी कला हमें बरबस ही परम्पराओं , कला और संस्कृति के तमाम पक्षों से परिचय कराती है। आदिवासी समाज और आदिवासी कला के लिए पायल का समर्पित भाव उनके व्यक्तित्व की पहचान है। पायल को उनके परिवार ने तो त्याग दिया किंतु पायल ने अपनी जड़ों से ,संस्कृति से रिश्ता रखकर अपने स्त्रीत्व की रक्षा और अपनी कला के संवर्धन के जो बीड़ा उठाया है वो प्रेरणादायी है।

सिमरन सिंह : मूलतः बिहार की सिमरन किन्नर घराने से ताल्लुक रखने वाली बड़ी कम उम्र में डेरों में चली गयी क्योंकि उनकी माँ को घर से ज़्यादा महफूज डेरा लगा जहां कोई किन्नर होने पर ताने न देता। किन्नर डेरों में शामिल सिमरन अपने अस्तित्व को तलाशते मुंबई पहुंच गई। बधाई मांगी ,लोकल ट्रेन में भीख मांगी लेकिन कुछ अलग करने का जुनून और नेतृत्व क्षमता कूट कर भरी हुई सिमरन मांगना नहीं देना चाहती थीं समाज को। लेखन का शौक हो या पाककला में कुशलता की बात हो अपनी बात को निडरता से रखना हो या हक के लिए लड़ जाना हो सिमरन में हमेशा लीडरशिप दिखाई देगी। रेडियो जंक्शन में एंकरिंग की भूमिका के साथ आज मुम्बई में महिलाओं को सिलाई केंद्र में ट्रेनिंग के साथ रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाती सिमरन को पेंटिंग करते हुए देखना सुखद लगता है क्योंकि सिमरन के हौसलों की उड़ान इतनी लंबी है कि उसकी लिस्ट बनाना मुश्किल है हमारे लिए। हमेशा कुछ नया सीखते रहने की प्रवृत्ति और उसे कुशलता से निभाने का जुनून लिए सिमरन आज जापान हिंदी कल्चर सेंटर की ट्रांसजेंडर सदस्य, समाजसेवी, रेडियो एंकर बनकर तमाम लोगों की नज़रों से अपने हिस्से का सम्मान चुराकर ले आई हैं जिसपर हमें गर्व है।

प्रिया दत्ता – दिल्ली में रह रही प्रिया दत्ता मूलतः बिहार की हैं और ग्राफ़िक डिजाइनिंग और सोशल मीडिया प्रमोशन का कार्य करती हैं। इनकी खुद की कम्पनी स्थापित कर कुछ लोगों को रोजगार दे रखा है लेकिन चाहती हैं कि उनके इस क्षेत्र में ट्रांसजेंडर आगे आएं सीखें और आत्मनिर्भर बनें ताकि उन्हें काम दे सकें। परिवार से दूर रहकर अपने स्त्रीत्व को पहचान देने के साथ सम्मानजनक कार्य करके अपने माँ बाप के सामने ये साबित करने का प्रयास कर रही हैं कि ट्रांसजेंडर होने का मतलब सिर्फ किन्नर बनकर गलियों में घूमना ,मांगना और अपमानित होना ही नहीं है। वक़्त बदल चुका है अपने अधिकारों को पहचानकर ,शिक्षा का दामन थामना होगा तभी ट्रांसजेंडर के दामन में दशकों से लगा दाग मिटाया जा सकेगा।
इन सब प्रयासों के लिए प्रिया को न चाहते हुए भी घर से दूरी बनानी पड़ी जो उन्हें और उनकी माँ के मातृत्व को हर पल सताती है। माँ को इन्तज़ार होता है कि बेटा त्योहारों पर घर आएगा तो लाड़ करेगी वहीं बेटे के भीतर की प्रिया सफलता की इबारत लिखने को अपने वजूद को गढ़ रही है और परिवार से दूर रहकर उन्हें कहती रहती है कि माँ जन्द ही आना होगा। दोस्तों प्रिया की स्थिति आंखे नम कर देती है पर कहते हैं न मन्ज़िलों के लिए बढ़े कदमों को सब्र और तिलांजलि का घूंट तो पीना होता है। प्रिया जब भी घर लौटे उनकी मेहनत और उनके स्त्रीत्व को वही सम्मान और प्यार मिले इस कामना के साथ हम आज महिला दिवस पर उनके साहस को सलाम करते हैं।

अमृता सोनी- अमृता सोनी आज मोटिवेशनल स्पीकर हैं और सरकारी ऑफिसर के रूप में एचआईवी प्रोजेक्ट पर वर्षों से कम कर रही हैं । मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है इन्होंने । नाच गाकर सेक्सवर्क करके , भीख मांगकर फीस भरी इन्होंने क्योंकि एक लड़के के शरीर में एक स्त्री अपनी पहचान को व्याकुल अटखेलियां करने लगी थी और परिवार के लोगों को अंतर्मन की स्त्री का बाहर आना बर्दाश्त न था और रिश्तेदारी में समझाने वाले मर्द ने बच्चे के अंतर्मन में बैठी लड़की का न सिर्फ बलात्कार किया बल्कि घर से बेघर करवा दिया । पढ़ाई का जुनून ज़िंदा रहा सो भटकते जीवन को संवारने के लिए उसे जारी रखकर आगे बढ़ी लेकिन कम्बख़्त फीस जुटाने की जद्दोजहद ने कब एचआईवी पॉजिटिव कर दिया पता न चला । मास्टर्स की डिग्री और टेस्ट की रिपोर्ट साथ मिली । टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव थी लेकिन मास्टर्स की डिग्री उससे ज़्यादा पॉज़िटिव थी । रोई पर हारी नहीं अमृता बढ़ती गयी और आज लाखों एच आई वी पॉज़िटिव लोगों की ज़िंदगी में पॉजिटिविटी का अमृत घोल रही हैं।

देविका मंगलमुखी – राजस्थान के छोटे से ज़िले धौलपुर की देविका भारत की पहली ट्रांसमहिला कथक नृत्यांगना हैं । जिन्होंने शिक्षा को सफलता का आधार बनाया और नृत्य में रुचि होने के नाते लखनऊ घराने से कथक की शिक्षा ग्रहण की और आज कला के सानिध्य में अपनी साधना करती हुई तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों को हासिल कर देश और समाज में सकारात्मक नज़रिए के साथ आवाज़ बुलंद करती देखी जा सकती हैं। देवेंद्र के अंतर्मन में दिन प्रतिदिन संघर्ष करती देविका ने अंतर्मन से बाहर आकर अपने स्त्रीत्व के लिए संघर्ष से सफलता की राह शिक्षा के दम पर चुनी है इसलिए इनके क़दमों में बंधे घुंघरुओं की खनक में स्त्रीत्व की गूंज साफ दिखती है।

मीरा रघुवंश यादव- एक ग़रीब परिवार में जन्मी विलासपुर छत्तीसगढ़ की मीरा ओडिसी नृत्यांगना के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी हैं और अपनी कला की विरासत नई पीढ़ी को सौंपने की पुरज़ोर कोशिश में व्यस्त हैं। रघुवंश नाम का वो बच्चा जो ग़रीबी में पला और परिवार में पढ़ने में सबसे तेज़ रहा तो ज़ाहिर तौर पर परिवार की उम्मीदें ,सपने ग़रीबी को मिटाने के जन्म लेने ही थे। पढ़ाने को लेकर परिवार ने सब कुछ सहा क्योंकि गरीबी ज़्यादा भेद नहीं करती ।अपनी ज़िंदगी संवारने के लिए सब सह जाती है। ख़ैर रघुवंश के भीतर घुंघरुओं की रुनझुन में झूमती मीरा जवान होती गयी और उसे तमाम संघर्षों बाद अपनाया सिर्फ ओडिसी के गुरु ने ये कहकर कि कला का कोई जेंडर नहीं होता । इससे पहले रघुवंश के भीतर की मीरा बचपन से नृत्य के लिए व्याकुल गुरु की तलाश में भटकती रही थीं पर किसी ने अपनाया नहीं था क्योंकि समाज को लगता है कि ट्रांसजेंडर बच्चों का जन्म हुआ ही अपराध का जन्म हुआ है। बस फिर क्या था मीरा को गुरु मिला और मीरा अपनी साधना में मग्न होकर नाचती गयीं । आज रघुवंश के भीतर की मीरा को अपने अस्तित्व की पहचान मिली मीरा रघुवंश यादव के रूप में। यहां भी शिक्षा की राह पर ही मन्ज़िल हुई आसान ।

पवन यादव – कुशीनगर में जन्म लेने वाला पवन यादव एक ट्रांस जेंडर बच्चा बड़ा होकर ट्रांसजेंडर समुदाय को न्याय दिलाने के लिए क़दम बढ़ाएगा किसने सोचा था। लेकिन कोरोना काल में वकालत की पढ़ाई कर रहे पवन के भीतर की स्त्री ने जब अपनी ही ट्रांसजेंडर दोस्त को मुश्किलों में देखा तो इरादा और पक्का कर लिया कि अब इंसाफ के लिए क़ानूनी भाषा में बात करनी ही होगी। उनकी दोस्त को किराए पर घर मिलने के बाद जब गृहप्रवेश पूजा की और सामान रखा तब सोसाइटी ने ये कहकर बाहर का रास्ता दिखाया कि यहां ट्रांसजेंडर रहेंगे तो माहौल खराब होगा। लेकिन कोविड काल हो या सामान्य स्थिति बिना नोटिस किराएदार को बाहर नहीं कर सकते। पुलिसकर्मियों ने भी न सुनी थी उसी दौरान पवन से मेरी बात हुई थी। फिर ट्रांसजेंडर बिल की कॉपी के साथ न्याय की लड़ाई शुरू हुई उसी बीच पवन की पढ़ाई पूरी हुई और पवन बन गई महाराष्ट्र की पहली ट्रांसजेंडर वकील जो हर दिन अधिकारों के लिए कानूनी हथकंडे अपनाकर आवाज़ बुलंद कर रही हैं । पवन की इस राह से कुछ राहत तो ज़रूर महसूस की होगी उन तमाम सिसकती ट्रांसजेंडर जिंदगियों में जो घुट रही हैं घरों के भीतर बन्द कमरों में , बेघर होकर भटकती दो रोटी के लिए महापाप के चौराहों पर।
ये वो स्त्रियां हैं जो तन से नहीं आत्मा से स्त्रियां हैं और महापाप के चौराहों गलियों में भटकर जाने कितनों के पाप का प्रायश्चित अपने ऊपर लेकर ,इल्ज़ाम अपने ऊपर लेकर समाज को एक नई दिशा दे रही हैं।

लेखिका : शालिनी सिंह (रेडियो जॉकी)
मैनेजिंग डायरेक्टर:रेडियो जंक्शन

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *