**गेंदा और ग्लेडियोलस की खेती से किसानों को मिल रहा अधिक लाभ**
जिले के किसानों ने अपनाई फ़ूलों की खेती
पड़ोसी जिलों में बढ़ी गोंडा जिले के फ़ूलों की मांग
अयोध्या से लेकर लखनऊ की मंडियों में कर रहे आपूर्ति
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता
Gonda News
जिले के किसानों के लिए फूलों की खेती ना सिर्फ उनके जीवन में आर्थिक सुधार का एक बेहतरीन माध्यम बन रही है। साथ ही साथ इनकी खुशबु से गाँव के आँगन भी महक रहे हैं। पड़ोसी जिलों में बढ़ी फ़ूलों की मांग ने फूल की खेती करने वाले किसानो के उत्साह को सातवे आसमान तक पहुंचा दिया है। अयोध्या से लेकर लखनऊ की फ़ूलों की मंडियों में इन गोंडा के फूल सज रहे हैं। गेंदा और ग्लेडियोलस जैसे फूल किसानों की पसंद बनते जा रहे हैं। सही समय और देखरेख से इन फूलों की खेती न सिर्फ अधिक पैदावार देती है बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ करती है। गेंदा की महक से जहां आंगन महक सकता है, वहीं इसकी खेती से आर्थिक सुधार भी संभव है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत जिले के किसान अब गेंदा, गुलाब, चांदनी और ग्लेडियोलश की खेती कर अपने जीवन को संवार सकते हैं। शासन की ओर से गेंदा और ग्लेडियोलश की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं। इस वर्ष जिले में गेंदा की खेती के लिए 50 हेक्टेयर और ग्लेडियोलस के लिए 10 हेक्टेयर का लक्ष्य तय किया गया है।
**जिला उद्यान अधिकारी रश्मि शर्मा के अनुसार, जिले में 40 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में विभिन्न फूलों की खेती की जा रही है। किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए जागरूक किया जा रहा है, और समय-समय पर कैंप एवं कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें जानकारी दी जा रही है।
फूलों की खेती से जुड़े किसानों का कहना है कि उन लोगों ने गेंदा की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया और अब खेती का दायरा बढ़ा दिया है। कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली यह खेती जिले के कई किसानों की जिंदगी में बदलाव ला रही है।
ग्लेडियोलस के बारे में रश्मि शर्मा ने विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि की खेती करके किसान अधिक धन कमा सकते हैं। इनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है। ग्लोडियोलस शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘ग्लेडियस’ से बना है, जिसका अर्थ ‘तलवार’ है क्योंकि ग्लेडियोलस की पत्तियों का आकार तलवार जैसा होता है। इसके आकर्षक फूल जिन्हें लोरेट भी कहते हैं, पुष्प दंडिका ‘स्पाइक’ पर विकसित होते हैं और ये 10 से 14 दिनों तक खिले रहते हैं। इसका उपयोग कट- फ्लावर के रूप में गमलों में एवं गुलदस्तों में किया जाता है। ग्लेडियोलस की कुछ अद्वितीय विशेषताओं जैसे अधिक आर्थिक लाभ, आसान खेती, शीघ्र पुष्प प्राप्ति, पुष्पकों के विभिन्न रंगों, स्पाइक की अधिक समय तक तरोताजा रहने की क्षमता एवं कीट-रोगों के कम प्रकोप आदि के कारण इसकी लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
भूमि और जलवायु
ग्लेडियोलस की खेती सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है, किंतु बलुई दोमट मृदा जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के मध्य हो तथा जीवांश पदार्थ की प्रचुरता हो, साथ ही भूमि के जल निकास का उचित प्रबंध हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। खुला स्थान जहां पर सूर्य की रोशनी सुबह से शाम तक रहती हो, ऐसे स्थान पर ग्लेडियोलस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
ग्लेडियोलस की खेती हेतु के में से के में तापक्रम 16 डिग्री सेंटीग्रेट तथा अधिक तापक्रम 23 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त होता है इसमे फूल आने पर बरसात नहीं होनी चाहिए ग्लेडियोलस की खेती सभी प्रकार की भूमि की जा सके ती है जहाँ पर पानी का निकास अच्छा होता है लेकिन बलुई दोमेंट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है।
ग्लेडियोलस की किस्में
ग्लेडियोलस किस्मों में दोस्ती, स्पिक, अवधि, मंसूर लाल, डा. लेमिंग, पीटर नाशपाती और सफेद दोस्ती । भारत में विकसित किस्मों में सपना, पूनम, नजराना, अप्सरा, अग्निरेखा, मयूर, सुचित्रा, मनमोहन, मनोहर, मुक्ता, अर्चना, अरूण और शोभा हैं । ग्लेडियोलस में विभिन्न रंगों की अनेक उत्तम गुणवत्ता वाली प्रजातियां प्रचलित हैं।
गेंदा के फ़ूलों के खेती के बारे में विस्तार से चर्चा हुए जिला उद्यान अधिकारी रश्मि शर्मा ने बताया भारत में पुष्प व्यवसाय में गेंदा का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर वृहत् रूप में व्यवहार होता है। गेंदा फूल को पूजा अर्चना के अलावा शादी-ब्याह, जन्म दिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर पंडाल, मंडप-द्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला, बुके, फूलदान सजाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। गेंदा के फूल का उपयोग मुर्गी के भोजन के रूप में भी आजकल बड़े पैमाने पर हो रहा है। इसके प्रयोग से मुर्गी के अंडे की जर्दी का रंग पीला हो जाता है, जिससे अण्डे की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, साथ ही आकर्षण भी बढ़ जाता है।
गेंदा के औषधीय गुणों का बखान करते हुए जिला उद्यान अधिकारी ने कहा कि अपनी औषधीय गुणों के कारण गेंदा का एक खास महत्व है।
गेंदा के औषधीय गुण
1. कान दर्द में गेंदा के हरी पत्ती का रस कान में डालने पर दर्द दूर हो जाता है। खुजली, दिनाय तथा फोड़ा में हरी पत्ती का रस लगाने पर रोगाणु रोधी का काम करती है। अपरस की बीमारी में हरी पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है। अन्दरूनी चोट या मोच में गेंदा के हरी पत्ती के रस से मालिश करने पर लाभ होता है।
2. साधारण कटने पर पत्तियों को मसलकर लगाने से खून का बहना बन्द हो जाता है।
3. फूलों का अर्क निकाल कर सेवन करने से खून शुद्ध होता है।
4. ताजे फूलों का रस खूनी बवासीर के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।
गेंदा की खेती के लिए भूमि
गेंदा की खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट एवं बलुआर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है जिसमें उचित जल निकास की व्यवस्था हो ।
भूमि की तैयारी
भूमि को समतल करने के बाद एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर, मिट्टी को भुरभुरा बनाने एवं ककर पत्थर आदि को चुनकर बाहर निकाल दें तथा सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियाँ बना दें।



