स्कूल मर्जर के खिलाफ बस ऐसे ही नहीं उठ खड़े हुए हैं शिक्षक और उनके संगठन
शिक्षक और छात्र हितों को लेकर उपजी हैं गहरी आशंकाएं
प्रदीप मिश्रा, प्रमुख संवाददाता

Gonda News :

गोंडा समेत पूरे प्रदेश में कम नामांकन वाले परिषदीय विद्यालयों को समीपवर्ती स्कूलों में मिलाने (मर्जर) की सरकारी योजना ने शिक्षक संगठनों को सड़कों पर उतार दिया है। जिले के शिक्षकों का कहना है कि यह फैसला न केवल रोजगार सुरक्षा व पद-स्थायित्व पर खतरा पैदा करता है, बल्कि बच्चों—ख़ासकर दूरदराज़ गांवों की छात्राओं—की स्कूल-पहुंच और सीखने की निरन्तरता भी तोड़ देगा। प्रदेश-व्यापी विरोध के बीच गोंडा में आंदोलन तेजी से फैल रहा है।

गोंडा में कितना बड़ा है प्रस्तावित मर्जर

बेसिक शिक्षा विभाग ने जिले के 300 से अधिक ऐसे सरकारी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय चिह्नित किए हैं जिनमें छात्र-संख्या तय मानक से कम है। इन सभी को चरणबद्ध तरीके से आसपास के बड़े विद्यालयों में समायोजित किया जाना है।

पहले चरण में 120 स्कूल जुलाई-अगस्त में ही मर्ज करने की कार्य योजना तैयार है। खण्ड शिक्षा अधिकारियों से भवन-मित्रता, पहुँच-सड़क व परिवहन दूरी का ब्‍यौरा मांगा जा चुका है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खण्ड कार्यालय सस्तर पर डाटा अन्तिम रूप देने की डेडलाइन जून महीने को तय किया गया है।

इन कारणों से गुस्से में आए हैं शिक्षक

शिक्षक संगठन अस्पष्ट मानक होने का आरोप लगा रहे हैं। प्रदेश स्तर पर “50 से कम” नामांकन की सीमा बताई गई, मगर अलग-अलग ज़िलों में 10-50 के बीच अलग-अलग कट-ऑफ तय हो रहा है; इससे भ्रम और असमानता बढ़ी। रोज़गार व पदोन्नति का संकट बढ़ने के आसार जताएं जा रहे हैं। शिक्षक संगठनों ने आशंका जताई है कि दो स्कूलों के विलय पर अमूमन एक पद सरप्लस हो जाएगा, खासकर प्रधानाध्यापक पद का भविष्य अनिश्चित है। विभिन्न जिलों के शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों ने ज्ञापनों में तर्क दिया है कि लंबी दूरी से खासकर लड़कियों के ड्रॉप-आउट बढ़ेंगे और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों पर बोझ बढ़ेगा।
उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ की गोंडा इकाई बीआरसी कौड़िया में एकत्र होकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सम्बोधित ज्ञापन बीईओ के माध्यम से भेजेगी। जिला अध्यक्ष और मंत्री ने शिक्षकों से अधिकतम सहभागिता की अपील की है।

प्राथमिक शिक्षक संघ व संयुक्त मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारियों ने सभी जिलों के डीएम के माध्यम से समान ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया है।
30 जून तक ब्लॉक-वार सभाएँ करने का अभियान संगठनों ने चला रखा है। 5 जुलाई से संभावित धरना-प्रदर्शन व ब्लैक बैज आंदोलन, विधानसभा सत्र शुरू होने पर लखनऊ में राज्य-स्तरीय रैली की चेतावनी संगठनों की तरफ से जारी की गई है। बेसिक शिक्षा परिषद के सूत्रों का कहना है कि पेयरिंग से शिक्षक-छात्र अनुपात दुरुस्त होगा और खाली होने वाले भवनों में बाल वाटिका / आंगनबाड़ी या हेल्थ-वेलनेस सेंटर खोले जाएंगे। विभाग ने प्री-प्राइमरी नामांकन व बाल वाटिका के आंकड़े भी माँगकर समायोजन का डेटाबेस तैयार करना शुरू कर दिया है। जून महीने के भीतर बीएसए कार्यालय नामांकन-आधारित अन्तिम सूची जारी कर सकता है। पहला अकादमिक समायोजन जुलाई-अगस्त में होने के आसार बनाते दिख रहे हैं। यदि शिक्षक संगठनों का जोर कम पड़ा तो विभाग ऑनलाइन सूची जारी कर जून के बाद स्वचालित समायोजन प्रक्रिया शुरू कर सकता है। गोंडा के शिक्षक नेताओं का कहना है कि वे “मर्जर नहीं—संसाधन बढ़ाओ” का नारा छोड़ने वाले नहीं हैं। जहाँ विभाग इसे व्यवस्थित संसाधन-बंटवारा बता रहा है, वहीं शिक्षक व ग्रामीण इसे संगठनात्मक कटौती और गांव-स्कूल मॉडल पर सीधा हमला मान रहे हैं। आने वाले सप्ताह में ज्ञापन के बाद वार्ता या टकराव बढ़ेगा। दोनों में से कोई एक रास्ता साफ होगा, लेकिन इतना तय है कि स्कूल मर्जर की फाइल पर अंतिम दस्तख़त से पहले गोंडा में शिक्षा मोर्चे पर गहमागहमी कम नहीं होने वाली है।

 

विनय तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ

“स्कूल मर्जर की यह योजना शिक्षक हितों पर कुठाराघात है। इससे न सिर्फ शिक्षकों के रोजगार की अनिश्चितता बढ़ेगी, बल्कि छात्रों की शिक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि इस फैसले को तत्काल प्रभाव से वापस ले।”

अशोक पांडे, जिलाध्यक्ष, पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ

“यह कदम सरकार की शिक्षा विरोधी मंशा को उजागर करता है। स्कूलों को एकजुट करने के पीछे की मंशा संसाधनों की बचत नहीं, बल्कि शिक्षकों को हतोत्साहित करने की योजना है।”

अमर यादव, शिक्षक नेता

“स्कूल मर्जर से गांवों की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो जाएगी। कई छात्र विद्यालय से दूर हो जाएंगे, जिससे ड्रॉपआउट दर बढ़ेगी। हमें छात्रों के भविष्य को खतरे में नहीं डालना चाहिए।”

वीरेंद्र मिश्रा, प्रदेशीय नेता, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ

“यह योजना बिना ज़मीनी अध्ययन और शिक्षकों से विमर्श के लागू की जा रही है। इससे न केवल शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार बढ़ेगा, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता भी गिर जाएगी।”

आनंद त्रिपाठी, जिलाध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक संघ

“हम इस फैसले के विरोध में जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं। यह मर्जर छात्र और शिक्षक दोनों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।”

शकुंतला सिंह, शिक्षक नेता

“स्कूलों का विलय करने से छात्राओं की शिक्षा प्रभावित होगी, क्योंकि उन्हें दूर-दराज के स्कूलों तक पहुंचना कठिन होगा। इससे बालिका शिक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।”

किरन सिंह, जिलाध्यक्ष, जूनियर हाईस्कूल पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ

“महिलाओं और ग्रामीण विद्यार्थियों की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखे बिना लिया गया यह फैसला अव्यावहारिक है। सरकार को ज़मीनी हकीकत को समझना होगा।”

वीरेंद्र त्रिपाठी, शिक्षक नेता

“शिक्षा विभाग को चाहिए कि पहले मूलभूत ढांचे को मजबूत करे, फिर कोई बड़ा कदम उठाए। मर्जर से छोटे स्कूल बंद होंगे और स्थानीय बच्चों को पढ़ाई से वंचित होना पड़ेगा।”

वीर विक्रम सिंह, शिक्षक नेता

“स्कूल मर्जर केवल फाइलों में अच्छे आंकड़े दिखाने का जरिया है। जमीन पर इसका असर नकारात्मक होगा। हम इसका पूरी तरह विरोध करते हैं।”

नरेंद्र सिंह, शिक्षक नेता

*गांव के स्कूल से बच्चों और शिक्षकों के विस्थापन का अर्थ है,बच्चों को संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा गारंटी योजना के तहत सरल और सुलभ शिक्षा के मूल अधिकार से वंचित करना*

संदीप मौर्य, शिक्षक नेता

“हमने पहले भी ऐसे प्रयासों का विरोध किया है और फिर करेंगे। शिक्षक हितों की अनदेखी कर कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती।”

अवधेश त्रिपाठी, शिक्षक नेता

“यह कदम तुगलकी फरमान जैसा है। न तो इसमें शिक्षकों की राय ली गई और न ही छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखा गया। हम हर मंच से इसका विरोध करेंगे।”

अवधेश मणि मिश्रा, अध्यक्ष, शिक्षामित्र संघ

“स्कूल मर्जर से समायोजन और स्थानांतरण में भारी गड़बड़ी होगी। जो शिक्षक वर्षों से एक स्थान पर कार्यरत हैं, उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया जाएगा।”

अनूप सिंह, जिलाध्यक्ष विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेल्फेयर एसोसिएशन

सरकार का ये कदम शिक्षा क्षेत्र को खत्म करने जैसा हैं। शराब के दुकानो की संख्या बढ़ाई जा रही हैं स्कूल की संख्या घटाई जा रही है, ये दुखद विषय है। इसे वापस लिया जाए।

सतीश पांडे, शिक्षक नेता

“यह फैसला सिर्फ फाइलों में काम दिखाने का माध्यम है। इससे न तो शिक्षा सुधरेगी और न ही प्रशासनिक व्यवस्था। हमें इसका संगठित विरोध करना होगा।”

 

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